इस शरीर में विशेष बात क्या है? What is special about this body? | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

इस शरीर में विशेष बात क्या है?

विशेष बात इस शरीर में क्या है? इसमें साधनों का धाम और मोक्ष का द्वार है। समूचा शरीर द्वार नहीं है। इस शरीर में नौ द्वार हैं। यह जो नौ द्वार हैं, इनमें से कोई द्वार मोक्ष का द्वार नहीं है। 

संतवाणी से पता चलता है कि जो नौ द्वार वाले शरीर में रहते हैं, वे संसार में दौड़ते रहते हैं। इस शरीर में दसवां द्वार भी है। उस द्वार से गमन करो, तो निज घर में पहुंच जाओगे। यह शरीर स्थूल घर है। संत जो कहते हैं कि इसमें दशम द्वार है यह बहुत कम लोग जानते हैं। बाहर से अपने को समेटकर अंतर प्रविष्ट होकर अंतर्मुखी जहां तक होना होता है, वही दसवां द्वार है। यह दसवां द्वार ही मोक्ष का द्वार है। इसमें शरीर नहीं जाता, मन अवश्य जाता है। यह इस बार की विलक्षणता है। दसवें द्वार को योगियों के यहां आज्ञाचक्र कहा जाता है। यही है अन्तर्ज्योति और अन्तर्नाद का द्वार। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस 
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

एक सत्संगी और तीन डाकू | भगवान पर विश्वास | Ek Satsangi aur teen daaku | Bhagwan par Visvash | Believe in God | Santmat Satsang

|| प्रेरक प्रसंग ||

एक सत्संगी था। उसका भगवान पर बहुत ज्यादा विश्वास था। वो बहुत साधन- भजन भी अच्छे से करता था। सत्संग में जाकर सेवा भी देता था। उस पर गुरुजी की इतनी कृपा थी कि उसका साधना पर बैठते ही ध्यान लग जाता था।

एक दिन उसके घर अचानक से तीन डाकू आ गए और उसके घर का काफी सामान लूट लिया और जब जाने लगे तो सोचा कि इनको मार देना चाहिए नहीं तो ये लोगों को बताएगा।
ये सुनकर वे सत्संगी घबड़ा गया और कहने लगा तुम मेरे घर का सारा सामान, नकद, जेवर सबकुछ ले जाओ लेकिन मुझे मत मारो।

उन लुटेरों ने उसकी एक न सुनी और बन्दूक उसके सिर पर रख दी। सत्संगी बहुत रोया, गिड़गिड़ाया कि मुझे मत मारो, लेकिन लुटेरे मारने पर उतारू था।

तभी सत्संगी ने डाकुओं से कहा कि मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो। लुटेरों ने उनकी इच्छा जाना और फिर कहा कि ठीक है।

सत्संगी फ़ौरन कुछ देर के लिए ध्यान पर बैठ गया। उसने अपने गुरु को याद किया ऒर थोड़ी ही देर में गुरुजी ने उसे दर्शन दिए और दिखाया कि पिछले तीन जन्मों में तुमने इन लुटेरों को एक एक करके मारा था।

आज वो तीनों एक साथ तुम्हें मारने आया है, और मैं चाहता हूँ तुम तीनों जन्मों का भुगतान इसी जन्म में कर दो।
ये सुनकर सत्संगी उठ खड़ा हुआ और लुटेरे की बन्दूक अपने सर पर रख के हस्ते हुए बोला कि अब मुझे मार दो। अब मुझे मरने की कोई परवाह नहीं है।

ये सुनकर लुटेरे हैरान हो गए और सोचा कि अभी तो ये रो रहा था कि मुझे मत मारो और अब इसे इतनी ही देर में क्या हो गया।  उन्होंने उस सत्संगी से पूछा कि आखिर इतनी सी देर में ऐसा क्या हुआ कि तुम खुशी से मरना चाह रहे हो ??

उस सत्संगी ने सारी बात लुटेरों को बता दी। उनकी बात सुनकर लुटेरों ने अपना हथियार सत्संगी के पैरों में डाल दिए और हाथ जोड़कर विनती करने लगे कि हम तुम्हें नही मारेंगे बस इतना बता दो कि तुम्हारे गुरु कौन हैं।

सत्संगी ने अपने गुरुजी के बारे में बता दिया। उसके बाद वो लोग भी सब कुछ छोड़कर सत्संगी बन गए।

दोस्तों!
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि गुरु हर हाल में हर पल हमारी रक्षा करता है दुःख भी देता है तो हमारे भले के लिए इसलिए हर पल उस गुरु का शुक्र अदा करना चाहिए फिर चाहे वो परम पिता जिस हाल में भी रखे।
🙏🙏|| जय गुरु ||🙏🙏

यही संतमत की विशेष बात है | Yahi Santmat ki vishesh baat hai | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang |

यही संतमत की विशेष बात है।
एक संत की वाणी पढ़कर जितना लाभ, उतना लाभ अन्य संतों की वाणी पढ़ने से भी होता है। सबमें एक ही बात जान पड़ती है, यही संतमत की विशेष बात है। सब संतों का आदर और सब सद्ग्रन्थों का आदर बहुत अच्छा लगता है। 
जो सत्संग करें, वे सभी सत्संगी, कोई गैर सत्संगी नहीं। मनुष्य की हैसियत से हम सभी भाई-भाई हैं। यहाँ हमलोग सभी सत्संगी हैं। भले कोई भेद जानते हैं और कोई नहीं जानते हैं। 
ईश्वर सत्य है और सब उसकी माया है। दिखावटी हो, असलियत नहीं, यह माया है। जबतक ईश्वर को पाया नहीं, माया सत्य मालूम पड़ती है। ईश्वर सत्य है। माया को पार नहीं करने के कारण हम माया में फँसे रहते हैं। उसके पार होने के लिए चिन्ह चाहिए। ईश्वर-निर्मित और नर-निर्मित चिन्ह होते हैं। जो चिन्ह ईश्वर से निर्मित है, वह श्रेष्ठ है। ईश्वर-निर्मित चिन्ह के आधार से भक्ति करें। ईश्वर-निर्मित चिन्ह ज्योति और शब्द हैं। ये दोनों नर निर्मित नहीं, ईश्वर-निर्मित हैं। सूर्य में से ज्योति निकाल लीजिए तो कुछ नहीं देखेंगे। ऐश्वर्यवान विभूति संसार में सूर्य है, यह प्रत्यक्ष है। इससे ज्योति निकल जाय तो कुछ नहीं बचेगा। इसलिए ज्योति ही सार है। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज 
प्रेषक: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

ईश्वर-भजन से सुख होता है | Eshwar Bhajan se Sukh hota hai | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

ईश्वर-भजन से सुख होता है।

सत्संग से हमारा कल्याण होगा, यह निश्चय है। सत्संग से जो कल्याण होता है, उसका रूप है मोक्ष, जहाँ सारे भोगों की निवृत्ति होती है। सब लोगों के लिए सुख बहुत प्यारी चीज है। संसार के सुख में संतुष्टि नहीं है। जो मन-इन्द्रियों को सुहाता है, उसी को लोग सुख कहते हैं। जो मन-इन्द्रियों को नहीं सुहाता है, उसे दुःख कहते हैं। विषय से क्षणिक सुख का अनुभव होता है। इस लोक के निवासी के लिए कहा गया है कि- 
एहि तन कर फल विषय न भाई। 
स्वर्गउ  स्वल्प अन्त दुखदाई।। 
नर तनु पाइ विषय मन देहीं। 
पलटि सुधा ते सठ विष लेहीं।।

मन चंचलता का रूप है। जो चंचल रूप हो, वह स्थिर वस्तु को पकड़ सके संभव नहीं है। इन्द्रियों की शक्ति थोड़ी है। जैसे छोटे बर्तन के बटखरे से अधिक चीज को माप नहीं सकते हैं, उसी प्रकार इन्द्रियों के द्वारा विशेष वस्तु को माप नहीं सकते हैं। 

राकापति षोडस उगहिं, तारागण समुदाय। 
सकल गिरिन्ह दव लाइये, बिनु रवि राति न जाय।। 
ऐसेहि बिनु हरि भजन खगेसा।
मिटहिं न जीवन केर कलेसा।। 
      -गोस्वामी तुलसीदासजी

ईश्वर-भजन के बिना सुख नहीं होता है। ईश्वर-भजन से सुख होता है। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
प्रेषक: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

मैं संतों का पुजारी हूँ | Mai Santon ka pujari hun | I am the priest of the saints | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang


मैं संतों का पुजारी हूँ।

अनन्त एक ही है, इसलिए ईश्वर एक है। सब सांतों के पार में अनन्त अवश्य है। उसके गुण और शक्ति का परिमित बुद्धि से निर्णय होना संभव नहीं है। गुण-कर्मों के द्वारा उनका निर्णय नहीं हो सकता है। अपरिमित शक्ति कैसी होती है, यह परिमित बुद्धि को नहीं मालूम होता है। विषय क्षणभंगुर है। संसार में विषयों से नकली काम चलता है। संसार से हृदय अलग करके रखना चाहिए। राजा भरत हिरण से प्रेम करता था। शरीर छोड़ते समय हिरण में मन चला गया, इसलिए हिरण बनना पड़ा। आत्मा सबका एक है, भिन्न नहीं है और शरीर भाव से भिन्न-भिन्न है। जैसे -

जल महि कमलु निरालमु  मुरगाई  नैसाणै। 
सुरति शबदु भवसागर तरिअै नानक नामु बखानै।। 

जो संसार का कार्य संभालता है, वह संसार में शोभा पाता है। अर्जुन से भगवान श्री कृष्ण ने कहा-तुम युद्ध भी करो और मेरा ध्यान भी करते रहो। 

‘गृही माहि जो रहै उदासी, कहै कबीर मैं तिनके दासी।’ 
‘कबीर चाले हाट को, कहे न कोइ पतियाय। 
पाँच  टके  का  दोपटा, सात  टके  को जाय।।’ 
‘अनविचार  रमनीय  महा संसार भयंकर भारी।’ 

लोग कहते हैं कि मैं पुजारी हूँ।  मैं भी संतों का पुजारी हूँ। 

‘संत भगवन्त अन्तर निरन्तर नहीं किमपि मति विमल कह दास तुलसी।’  

मैंने अभी संतों का प्रसाद बाँट दिया। संतों के जितने वचन हैं, ये भी प्रसाद हैं। यह संसार विषयों का सागर है और हमलोग इसमें डूब रहे हैं। संत इस बात को जानते हैं और चेताते हैं।  

मरिये तो मरि जाइये छूट पडै जंजार।  

होशियारी की बात है कि अपने सरोकारी वस्तुओं से लाग (संबंध) हटा लो। इन्द्र बन जाओ, तब भी विकार नहीं छूटेगा। संसार और परमार्थ दोनों कामों के साथ-साथ चलो। संसार से बचने का ज्ञान संत-महात्मा  बतला देते हैं। उनके प्रसाद से राम-नाम सब कोई जाने।  -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं | Kewal dhyanyog se hi papon se bach sakte hain | Saved from sins only by meditation | Maharshi Mehi | Santmat Satsang

यदि शैल समं पापं विस्तीर्ण बहुयोजनम्। 
भिद्यते ध्यानयोगेन नान्यो भेदः कदाचन।।       
-ध्यानबिन्दु उपनिषद् 

मनुष्य अनिवार्य और वार्य दोनों तरह का कर्म करता ही रहता है। वह कर्म करने से बच नहीं सकता है। कर्म में पाप और पुण्य दोनों कर्म होते हैं। कोई पुण्य कर्म अधिक करते हैं और पाप कर्म कम। वही पुण्यात्मा कहलाते हैं। पाप कर्म का फल दुःख होता है और पुण्य कर्म का फल सुख होता है। बन्ध दशा में ही लोग पाप और पुण्य के फलों को भोगते हैं। पुण्य का फल मीठा लगता है और पाप फल कडुवा लगता है। केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं। युधिष्ठिर जी झूठ बोले थे। उनको भी पाप का फल भोगना पड़ा। थोड़ा भी पाप किए हैं तो उसका फल भी भोगना ही पड़ेगा। सिर्फ तीर्थ-दान करने से ही कोई पाप के फल से नहीं बच सकता है। श्रद्धा चाहिए, परन्तु अन्धी श्रद्धा नहीं। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

वह कुल बहुत उत्तम है | Vah kull {Khaandaan} bahut uttam hai | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang | Kuppaghat-Bhagalpur



वह कुल बहुत उत्तम है!

अन्तर में चलने के लिए भोजन पवित्र होना चाहिए। मांस-मछली का तो कहना ही क्या? आपलोगों को पहले से ही मालूम है, जिस-जिस कुल में मांस-मछली खाने का चलन नहीं है, वह कुल बहुत उत्तम है। नशा में अपव्यय, अपवित्रता और रोग है। चावल को धोकर भी खाते हैं; किंतु तंबाकू को बिना धोए ही मुँह में डालते हैं। कोई भी नशा अच्छा नहीं है, इससे रोग उत्पन्न होते हैं। इसको नहीं खाना चाहिए। जो खाते हो, उन्हें छोड़ देना चाहिए। इसके अतिरिक्त और नशा है- 

मद तो बहुतक भाँति का, ताहि न जानै कोय। 
तनमद मनमद जातिमद, मायामद सब लोय।। 
विद्यामद और गुणहु मद,  राजमद उनमद्द। 
इतने मद को रद्द करै, तब  पावै अनहद।।
   -कबीर साहब 

तानसेन से बैजूबाबरा गाने में विशेष था। अकबर के दरबार में तानसेन रहता था। वह गाने-बजाने में बहुत प्रवीण था। वह अकबर से हुक्म दिला दिया कि दिल्ली में कोई गाना गाने न पावे। जो गावे, उसको सजा मिल जाती थी। बैजूबाबरा जान-बूझकर शहर में गाना गाने लगा। गिरफ्तार करके दरबार में लाया गया। तानसेन से उसका मुकाबला हुआ। तानसेन हार गया। भगवान बुद्ध का वचन है- ‘किसी से वैर मत करो। जो तुमसे वैर करता है, उससे प्रेम करो। वैर पर ख्याल मत करो। वह पीछे तुम्हारा मित्र बन जाएगा।’ इसी तरह जीवन जीना चाहिए। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

ईश्वर में प्रेम | सदा ईश्वर में प्रेम रखो | सत्संग भजन करते रहो इसी में कल्याण है | Maharshi Mehi | Santmat Satsang | यहाँ सब कोई मुसाफिर हैं, फिर भी कहते हैं कि मेरा घर है।

ईश्वर में प्रेम  प्यारे लोगो!  संतों की वाणी में दीनता, प्रेम, वैराग्य, योग भरे हुए हैं। इसे जानने से, पढ़ने से मन में वैसे ही विचार भर जाते...