वह कुल बहुत उत्तम है | Vah kull {Khaandaan} bahut uttam hai | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang | Kuppaghat-Bhagalpur



वह कुल बहुत उत्तम है!

अन्तर में चलने के लिए भोजन पवित्र होना चाहिए। मांस-मछली का तो कहना ही क्या? आपलोगों को पहले से ही मालूम है, जिस-जिस कुल में मांस-मछली खाने का चलन नहीं है, वह कुल बहुत उत्तम है। नशा में अपव्यय, अपवित्रता और रोग है। चावल को धोकर भी खाते हैं; किंतु तंबाकू को बिना धोए ही मुँह में डालते हैं। कोई भी नशा अच्छा नहीं है, इससे रोग उत्पन्न होते हैं। इसको नहीं खाना चाहिए। जो खाते हो, उन्हें छोड़ देना चाहिए। इसके अतिरिक्त और नशा है- 

मद तो बहुतक भाँति का, ताहि न जानै कोय। 
तनमद मनमद जातिमद, मायामद सब लोय।। 
विद्यामद और गुणहु मद,  राजमद उनमद्द। 
इतने मद को रद्द करै, तब  पावै अनहद।।
   -कबीर साहब 

तानसेन से बैजूबाबरा गाने में विशेष था। अकबर के दरबार में तानसेन रहता था। वह गाने-बजाने में बहुत प्रवीण था। वह अकबर से हुक्म दिला दिया कि दिल्ली में कोई गाना गाने न पावे। जो गावे, उसको सजा मिल जाती थी। बैजूबाबरा जान-बूझकर शहर में गाना गाने लगा। गिरफ्तार करके दरबार में लाया गया। तानसेन से उसका मुकाबला हुआ। तानसेन हार गया। भगवान बुद्ध का वचन है- ‘किसी से वैर मत करो। जो तुमसे वैर करता है, उससे प्रेम करो। वैर पर ख्याल मत करो। वह पीछे तुम्हारा मित्र बन जाएगा।’ इसी तरह जीवन जीना चाहिए। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

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