केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं | Kewal dhyanyog se hi papon se bach sakte hain | Saved from sins only by meditation | Maharshi Mehi | Santmat Satsang

यदि शैल समं पापं विस्तीर्ण बहुयोजनम्। 
भिद्यते ध्यानयोगेन नान्यो भेदः कदाचन।।       
-ध्यानबिन्दु उपनिषद् 

मनुष्य अनिवार्य और वार्य दोनों तरह का कर्म करता ही रहता है। वह कर्म करने से बच नहीं सकता है। कर्म में पाप और पुण्य दोनों कर्म होते हैं। कोई पुण्य कर्म अधिक करते हैं और पाप कर्म कम। वही पुण्यात्मा कहलाते हैं। पाप कर्म का फल दुःख होता है और पुण्य कर्म का फल सुख होता है। बन्ध दशा में ही लोग पाप और पुण्य के फलों को भोगते हैं। पुण्य का फल मीठा लगता है और पाप फल कडुवा लगता है। केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं। युधिष्ठिर जी झूठ बोले थे। उनको भी पाप का फल भोगना पड़ा। थोड़ा भी पाप किए हैं तो उसका फल भी भोगना ही पड़ेगा। सिर्फ तीर्थ-दान करने से ही कोई पाप के फल से नहीं बच सकता है। श्रद्धा चाहिए, परन्तु अन्धी श्रद्धा नहीं। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

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