जो सत्संग से जुड़े रहते हैं, उनको चेत होता है कि सब कुछ छूटेगा, साथ जानेवाले धन की कमाई करो।
कबीर सो धन संचिये, जो आगे को होय।
माथे चढ़ाये गाठरी, जात न देखा कोय।।
भगवान श्रीराम कहते हैं कि केवल यही जीवन नहीं है, परलोक में भी सुख से रहने के लिए यत्न करो। परलोक को उत्तम, सुखमय, शांतिमय बनाने के लिए प्रयत्न करो और वह प्रयत्न क्या होगा? परमात्मा की भक्ति की पूर्णता हो जाने पर सदा के लिए बंधन से मुक्त हो जाओगे, आवागमन के चक्र से छूट जाओगे।
इसलिए संत-महात्मा कहते हैं कि उस सुख को प्राप्त करने का प्रयत्न करो, तब तुम्हारा इहलोक और परलोक- दोनों उत्तम बन जाएगा।
जौं परलोक इहाँ सुख चहहू।
सुनि मम वचन हृदय दृढ़ गहहू।। -रामचरितमानस
यह तभी होगा, जब मनोयोगपूर्वक साधना करेंगे। संसार के कामों को करते हुए ईश्वर-भजन करो।
कर से कर्म करो विधि नाना।
चित राखो जहँ कृपा निधाना।।
हाथ से संसार के कार्यों को करते रहो और अपने ख्याल को ईश्वर-परमात्मा की भक्ति में लगाये रखो। ऐसा करोगे तो तुम्हारा इहलोक और परलोक दोनों उत्तम बन जाएगा। यही संतों का ज्ञान है। यह शरीर सब दिन नहीं रहने वाला है। जो समय बीत गया, फिर वापस नहीं आनेवाला है।
"मन पछतइहैं अवसर बीते।"
अवसर बीत जाने पर पश्चाताप करना पड़ेगा और बाद में पश्चाताप करने से कुछ होगा भी नहीं। इसलिए संत-महापुरुष कहते हैं कि गफलत में मत रहो, ठीक-ठीक ख्याल करो। अपने कर्तव्य कर्म का ज्ञान करो और अपने कर्तव्य को करने में आलस्य मत करो। इस तरह से भगवान श्रीराम के कहे मुताबिक तुम्हारा इहलोक और परलोक उत्तम बन जाएगा। -महर्षि हरिनन्दन परमहंस जी महाराज
प्रेषक: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

