पूरा मर्द वही है जो घर बार में रहते हुए भजन करते हैं!
पहले का किया हुआ पाप कर्ममण्डल से आगे बढ़ने पर छूट जाता है। मन की एकाग्रता में पूर्ण सिमटाव होता है। सिमटाव का फल ऊर्ध्वगति है। ऊर्ध्वगति में एक तल से दूसरे तलपर जाना बिल्कुल संभव है। जिस मण्डल तक कर्म बन्धन है, उस मण्डल से आगे बढ़ने पर पहले का किया हुआ पाप नष्ट हो जाता है। वासा में कहा गया है- ‘बीजाक्षरं परम बिन्दुं’। बाहर में किसी महीन-से-महीन चिन्ह करने पर भी परिभाषा के अनुकूल बिन्दु नहीं होता है। कोई भी स्थूल पदार्थ से वह चिन्हित नहीं होगा। जहाँ सूक्ष्मधार की नोक पड़ेगी वहीं बिन्दु बनेगा। दृष्टि की धार सूक्ष्म पदार्थ है। तिल के द्वार में देखो। सूक्ष्म विषय दृश्य है, रूप है। बिन्दु दर्शन भी रूप का दर्शन है। सूक्ष्म विषय को भी त्याग देना चाहिए इसके ऊपर नाद की स्थिति है। दृश्य से छूटकर अदृश्य में आते हैं। शब्द में अपने उद्गम स्थान में खींचने का आकर्षण है। तुम मनुष्य हो तो मननशील, विचारवान हो जाओ। दरअसल में तुम देह नहीं हो। जो अपने को नहीं पहिचाने वह अपना क्या जाने। जहाँ अपने की पहचान नहीं है, वहाँ अपने संबंधी की भी पहचान नहीं है। देह में चन्द्रमा है लेकिन देख नहीं पाते हैं।
चन्दा झलके यहि घट माही, अन्धी आँखिन सूझे नाहीं।
तन में मन आवै नहीं निसदिन, बाहरि जाय।।
दादू मेरा जिव दुःखी, रहै नहीं लौ लाय।।
हमारा धर्म कहता है कि किसी भेष में रहो परन्तु अविहित काम नहीं करो, पाप कर्म से छूटे हुए रहो। अपने को ठीक तरह से रखिएगा तो लोग आपके पास स्वयं आवेगें। पूरा मर्द वही है जो घर बार में रहते हुए भजन करते हैं। जो संसार के कामों के डर से भाग गया, वह कमजोर है। अपने से कमाकर खानेवाला स्वावलम्बी होता है और भीख माँगकर खानेवाला परावलम्बी होता है। तनमन को निजमन में रखो यही अभ्यास है। जैसे संयमी होकर नितप्रति आहार करने से शरीर बढ़ता है, उसी प्रकार नितप्रति भजन करने से आत्मबल बढ़ता है और ज्ञान पुष्ट होता है। जो कोई भजन की विधि को जानकर भजन करते हैं, वे परमात्मा की सेवा करते हैं। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
प्रेषक: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम


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