उस निशाने को कौन पावेगा | Us nisane ko kaun pavega | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang | Kuppaghat-Bhagalpur


!! उस निशाने को कौन पावेगा !!

ईश्वर के प्रेमियों! केवल बाहर- ही-बाहर ईश्वर को नहीं खोजो। बाहर-बाहर खोजने के बाद अंदर-अंदर भी खोज करो। बिना किसी के सिखाए आप एक अक्षर भी नहीं लिख सकते । बुद्ध भगवान ने कहा है- "ज्ञानी केवल सिखाने वाले हैं, करना तुमको ही पड़ेगा।" अपना सिमटाव करो, जहां मैंने बताया है। सदग्रंथ गुरु का वाक्य और अपना विचार मिल जाए तो कितना विश्वास होगा। गुरु नानक ने कहा है-

अंतरि जोत भाई गुरु साखी चीने राम करंमा।। 

अंतर में प्रकाश हुआ, यह गुरु की गवाही है और तब गुरु के दयादान को पहचाना। इस सहारा को पकड़ो। जो इस को पकड़ता है, वह विषयानंद में नहीं दौड़ता। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-

ब्रह्म पीयूष मधुर शीतल, जो पै मन सो रस पावै। 
तौ कत मृगजल रूप विषय, कारण निशिवासर धावै।।

विषय रस में जो दौड़ता है, इसका मतलब है कि ब्रह्म-पीयूष उसको मिला नहीं है। मनुष्य अपने अंदर अभ्यास करके ब्रह्म ज्योति और ब्रह्मनाद को प्रत्यक्ष देख सुन सकता है। यही सहारे हैं! संतों की वाणीयों में हम यही बात पढ़ते हैं। क्या वेद और क्या उपनिषद - ज्ञान सबमें यह बात है। आज भी जो करते हैं, उनको चिन्ह मिलता है। भजन करने की भी शक्ति होती है। जो अभ्यास को बढ़ा लेते हैं, उसको चिन्ह देखने में आता है। जो ब्रह्म दृष्टि से कुछ देखना चाहता है, वह नहीं देख सकता। अंतर्दृष्टि करो, तब देखने में आवेगा। आंख बंद करो, मानसिक-रचना को छोड़ो, बाहर का देखना छोड़ो, अंतर में दृष्टि रखो तब देखने में आवेगा कि अंतर में क्या है। पवित्रता से रहो ईश्वर भजन करो श्रवण मनन और साधन होना चाहिए, इसमें बल पाने के लिए सदाचार का पालन आवश्यक है। सदाचार पालन के बिना अंतर ज्योति और अंतर्नाद को कोई नहीं पा सकता। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज 

संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

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