ईश्वर-भजन से सुख होता है।
सत्संग से हमारा कल्याण होगा, यह निश्चय है। सत्संग से जो कल्याण होता है, उसका रूप है मोक्ष, जहाँ सारे भोगों की निवृत्ति होती है। सब लोगों के लिए सुख बहुत प्यारी चीज है। संसार के सुख में संतुष्टि नहीं है। जो मन-इन्द्रियों को सुहाता है, उसी को लोग सुख कहते हैं। जो मन-इन्द्रियों को नहीं सुहाता है, उसे दुःख कहते हैं। विषय से क्षणिक सुख का अनुभव होता है। इस लोक के निवासी के लिए कहा गया है कि-
एहि तन कर फल विषय न भाई।
स्वर्गउ स्वल्प अन्त दुखदाई।।
नर तनु पाइ विषय मन देहीं।
पलटि सुधा ते सठ विष लेहीं।।
मन चंचलता का रूप है। जो चंचल रूप हो, वह स्थिर वस्तु को पकड़ सके संभव नहीं है। इन्द्रियों की शक्ति थोड़ी है। जैसे छोटे बर्तन के बटखरे से अधिक चीज को माप नहीं सकते हैं, उसी प्रकार इन्द्रियों के द्वारा विशेष वस्तु को माप नहीं सकते हैं।
राकापति षोडस उगहिं, तारागण समुदाय।
सकल गिरिन्ह दव लाइये, बिनु रवि राति न जाय।।
ऐसेहि बिनु हरि भजन खगेसा।
मिटहिं न जीवन केर कलेसा।।
-गोस्वामी तुलसीदासजी
ईश्वर-भजन के बिना सुख नहीं होता है। ईश्वर-भजन से सुख होता है। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
प्रेषक: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

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