हमलोग आर्य हैं। आर्य का अर्थ-बुद्धिमान, विद्वान, सभ्य आदि है। Hamlog Arya hain | Budhiman-Vidwan-Sabhya | Maharshi Mehi Paramhans Ji | Santmat Satsang

हमलोग आर्य हैं। 

हमलोग आर्य हैं। आर्य का अर्थ-बुद्धिमान, विद्वान, सभ्य आदि है। गीता में, महाभारत में, बौद्ध ग्रन्थों में हमारे लिए ‘आर्य’ शब्द छोड़कर दूसरा नहीं आया है। हाल में तुलसीदासजी हुए, इनकी रचना में ‘आर्य’ के सिवा दूसरा शब्द नहीं है। ‘आर्य’ कहते हैं-बुद्धिमान को। हमको बुद्धिमान बनना चाहिए। ‘बुद्धि’ वह हो, जिसमें आत्मज्ञान हो।  
हमलोग सत्संग करते हैं। यह सत्संग तीर्थराज है। इस सत्संग में सरस्वती की धारा अधिक बहती है। गोस्वामी तुलसीदासजी का कहना है कि सत्संग तीर्थराज है। तीर्थराज में गंगा, यमुना और सरस्वती की धारा बहती है।

राम भगति जहँ सुरसरि धारा।
सरसइ ब्रह्म विचार प्रचारा ।। 
विधि निषेधमय कलिमय हरनी। 
करम कथा रविनंदिनी बरनी ।। 
मुझको सरस्वती की धारा में स्नान करना है और आपको भी इसी में स्नान कराना है। 
-संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ईश्वर में प्रेम | सदा ईश्वर में प्रेम रखो | सत्संग भजन करते रहो इसी में कल्याण है | Maharshi Mehi | Santmat Satsang | यहाँ सब कोई मुसाफिर हैं, फिर भी कहते हैं कि मेरा घर है।

ईश्वर में प्रेम  प्यारे लोगो!  संतों की वाणी में दीनता, प्रेम, वैराग्य, योग भरे हुए हैं। इसे जानने से, पढ़ने से मन में वैसे ही विचार भर जाते...